शायद मुझे तुम पेड़ समझते हो,
बस बोलते हो.. मेरी कभी सुनते नहीं..
शायद सोचते हो कि मेरी कोई उम्मीदें नहीं तुमसे !
जब खुश होते हो, मुझपर झूला डाल लेते हो,
और मुझे २ पल कि हंसी का कारण बताकर खुश कर देते हो,
फिर वो खुशी मैं तुमसे मांगता रह जाता हूँ, पर तुम नहीं आते.
जब भी परेशानी कि ठण्ड से कपकपाते हो,
मेरे सपनो कि कोई डाल काट कर सुलगा लेते हो..
शायद मेरे सपनो कि कोई एहमियत नहीं तुम्हे !
मैं जानता हूँ कि कभी एक छोटी सी बात पर,
फिर किसी परिंदे कि तरह उड़ जाओगे तुम,
अपना दर्द का घोसला मेरी ही किसी डाल पर छोड़कर..
पर उससे पहले मेरी एक इल्तेजा है,
एक बार ईमान से हँसकर मुझे गले लगा लेना,
फिर ख़ुशी से जल जाऊंगा मैं अरमानो कि किसी भी बेतुकी होली में.....
1 January 2012
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