जाने ये क्यूँ हमेशा साए कि तरह मेरे पीछे-पीछे चलता रहता है !
जहाँ से भी मैं गुज़रता हूँ, पिछले हर कदम की मिटटी पोटली में भर लेता है.
जीत, हार, बनते-बिखरते रिश्ते, ख़ुशी, हंसी, आंसू, आह, दर्द सब सहेज लेता है,
जो सब मैं पीछे फेकता हूँ, वो भी समेट लेता है.. कमबख्त कुछ तो छोड़ दे!
जब भी कभी आँख बंद करता हूँ, किसी बच्चे कि तरह कूद कर सामने आ जाता है,
और किसी फेरी वाले की तरह पोटली में से चुन-चुन कर सब दिखाता है.
खैर.. कौन समझाए इसे..
अनजाने ही सही, मेरा माज़ी मेरा दुश्मन भी है.. दोस्त भी.
मई १५, २०१२
पुणे
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