इस बाग़ में अब जाने का जी नहीं करता,
अब यहाँ कुछ नहीं बचा!
कभी यहाँ हर ओर खिलखिलाती कलियाँ हुआ करती थी,
खूबसूरत फूल महका करते थे।
यहाँ से गुजरी हवा से भी अदब की खुशबू आया करती थी।
जाने कहाँ से वो मनचले भँवरे आ कर बस गए इस बाग़ में!
और नोच डाला उन्होंने ये बाग़ बड़ी बेतरतीबी से!
कलियाँ, फूल.. फलों के बौर को भी नहीं छोड़ा उन्होंने !!
कहते हैं, बहुत मिन्नतें और गुहार लगायी थी कलियों ने माली से,
पर वो आँख पर पट्टी बांधे, हाथ में तराजू लिए
पुराने सौदे ही पूरे करने में ही मशगूल था।
अब न कलियाँ है, न फूल हैं, पर वो भँवरे अब भी बेधड़क घूम रहे हैं,
फिर नोच डालने को तैयार अगले मौसम में!!
अब ये बाग़ बेबस, डरा हुआ, कांटे सहेज रहा है..
और कलियों के न खिलने की दुआ कर रहा है।
और कलियों के न खिलने की दुआ कर रहा है।
ये बाग़ अब हरा रेगिस्तान नज़र आता है।
जाने कितने ही अरमानो का कब्रिस्तान नज़र आता है।
इस बाग़ में अब जाने का जी नहीं करता, अब यहाँ कुछ नहीं बचा!!
बेंगलोर
20/12/2012
Comments
Dosh to us mali ka bhi he jisne un tiddo ko baag me khule aam ghune diya....aur barabar ke dosi bawre bhi he jo tiddo ke samne khamosh ho majboor jiye ja rahe he :(
Really sad as to what happened
God punish those Animals and save the girl