कहाँ से मैंने शुरू किया था,
कितनी दूर चल निकला हूँ ,
वक्त ही एक फीता है जो ,
मेरे पीछे मेरा फासला नापता है।
कितने गुनाह सीने मे दफ़न किए थे,
और कितनी अच्छियाँ उन आँखों को दिखाई थी,
अकेले मे जब मेरा ईमान नंगा होता है,
आँखों का पूरा मोहल्ला झांकता है।
वक्त से भी दौड़ ना लडूं..
उन सारी आँखों की भी परवाह ना करूँ..
पर ख़ुद से छुपकर जाऊंगा कहाँ ..
उसे आँखों की ज़रूरत नही पड़ती,
जो अन्दर ज़मीर से मेरा खुदा ताकता है ।।
कितनी दूर चल निकला हूँ ,
वक्त ही एक फीता है जो ,
मेरे पीछे मेरा फासला नापता है।
कितने गुनाह सीने मे दफ़न किए थे,
और कितनी अच्छियाँ उन आँखों को दिखाई थी,
अकेले मे जब मेरा ईमान नंगा होता है,
आँखों का पूरा मोहल्ला झांकता है।
वक्त से भी दौड़ ना लडूं..
उन सारी आँखों की भी परवाह ना करूँ..
पर ख़ुद से छुपकर जाऊंगा कहाँ ..
उसे आँखों की ज़रूरत नही पड़ती,
जो अन्दर ज़मीर से मेरा खुदा ताकता है ।।
Comments
जो अन्दर ज़मीर से मेरा खुदा ताकता है ।।
gud khud me jhank kar dekhana achi bt hai