कल सन्नाटे से सामना हुआ, तो वो ख़ामोशी की चादर ओढ़े बैठा था.
मैंने कुछ लफ़्ज़ों से चादर को टटोला, तो मूंह फुलाकर बैठ गया..
दोस्ती का हाथ बढाया तो उसने मूंह फेर लिया,
एक अरसे से देखा नहीं था तो पहचानने से भी इनकार कर दिया..
फिर मेरे साथ अकेलापन भी आया है देखकर मुस्कुराया,
कुछ पुरानी बात चली, तो मौसम ही बन गया..
फिर रात भर मैं, अकेलापन और सन्नाटा बेलफ्ज़ ज़बां में बात करते रहे,
और शराब थी, कि गिलास में गिरते और गले से उतरते हुए शोर मचाती रही...
अगली बार हमारी बातों की महफ़िल में शराब को नहीं लायेंगे ...
February 4, 2012
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फिर रात भर मैं, अकेलापन और सन्नाटा बेलफ्ज़ ज़बां में बात करते रहे, और शराब थी, कि गिलास में गिरते और गले से उतरते हुए शोर मचाती रही...
अगली बार हमारी बातों की महफ़िल में शराब को नहीं लायेंगे
कभी तुमने ही मेरे हाथों में दीवान-ए-ग़ालिब थमाई थी,
पता ही नहीं चला कब ग़ालिब ने लिखना सिखा दिया..
galib..guljar..ke bad ab hum tumhare sayri(poems) ke bhi kayal ho gaye.