कुछ कागजों की उथल -पुथल से आँख खुली।
देखा तो एक पुरानी लिखी अधूरी कविता ऊपर आना चाहती है ।
कभी लिखा था अपने दोस्तों के बारे मे,
और जब लब्ज़ कम पड़ गए तो छोड़ दिया था उसे वहीँ।
मेरी बाकी लिखी कविताओ की तरफ़ इशारा करके
कहती है कि मैं उसे पूरा करूँ।
जानता हूँ बहुत बोलता हु मैं ,
पर दोस्ती को बयां कर सके , वो लब्ज़ अब तक बने नहीं ।
हर बार गले मिलने पर खुश दिल का बोलना ,
हर दिन खुश होने पर पीठ ठोकना ,
वो हर शाम को चाय की चुस्कियां ,
वो जश्न मे टकराती बोतलों की आवाज़ ,
जो बयान कर सके इन आवाजो को
कहाँ से लाऊं वो अल्फाज़ ।
माफ़ी मांग कर उस कविता को फ़िर एक बार सहेज कर रख दिया ।
और फ़िर सोचा कि आज कैसे इन कागजों मे जान आ गई ॥
देखा सामने की खिड़की खुल पड़ी है ।
और आज.. फ़िर घर मे दोस्ती की हवाएँ आई है ।
०४-०८-२००८
( फ्रेंडशिप डे की सुबह)
Comments
Poem reflects the kind personality of a marvellous poet.
और फ़िर सोचा कि आज कैसे इन कागजों मे जान आ गई ॥
देखा सामने की खिड़की खुल पड़ी है ।
और आज.. फ़िर घर मे दोस्ती की हवाएँ आई है ।
mind blowing
really very nice feelings u write in ur poems
i like ur ways of writing
It really feels good to find like minded people :)