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वो रुका हुआ लम्हा



वो लम्हा जब सब थम सा जाता है...  शायद कुछ बेहतर होने से पहले का लम्हा।  

जैसे स्कूटर को धकेलकर स्टार्ट करते वक़्त, 
उसका गीयर में अटकना और  शुरू हो जाना ! 

जैसे शिकार के वक़्त शेर का धीमे से पास पहुंचकर रुक जाना,
या उसी लम्हे में हिरन का एक पल शांत होकर फिर बेतहाशा भागना और गुम हो जाना ..

हर थमे हुए लम्हे से कुछ तो शुरू होता है.. 

और बिग बैंग भी तो यूँ ही हुआ होगा ना !
सिकुचा सिमटा सा ब्रह्माण्ड, एक पल को थमा होगा,
और फट पड़ा होगा हमेशा बढ़ते जाने के लिए.. 

हाँ याद है मुझे जब मैंने तुम्हे पहली बार देखा था.  
तुमने कैफे में कदम रखा था और वो बातें करते लोग, आर्डर लेता वेटर, 
म्यूजिक, सड़क का शोर, मेरी सासें और वक़्त .. सब थम ही तो गया था| 

वो लम्हा जब सब थम सा जाता है...  कुछ बेहतर होने से पहले का लम्हा। 

३१ अगस्त २०१७ 
बैंगलोर 

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