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Showing posts from January, 2012

'Goa'

This poem is about the way I saw goa when we 3 childhood friends (Milind, Sarva & I) visited ' Goa ' some time back.. कुछ बात है इस ज़मीन में, कि यहाँ सब आते हैं.  अपना रंग, अपनी ज़बान, अपनी पहचान पीछे छोड़कर.. कुछ हम जैसे भूरे, जो गोरों कि तरह पानी के अंग्रेजी खेल खेलने आते हैं. और कुछ गोरे जो धुप में लेटकर हमारी तरह भूरा होने कि कोशिश करते हैं.. कम कपड़ों में चमकते जिस्म.. किसी नंगेपन से ज्यादा आजादी दिखाते हैं. जैसे किसी ने बरसों से पहना सामाजिक ज़िम्मेदारी का लबादा उतार दिया हो पानी और शराब यहाँ कुछ यूँ मिले-जुले से लगते हैं, जैसे बचपन से हम ३ इंसान साथ रहते-रहते अब शायद १ ही रह गए हैं.. हम ज़रूर वहां से लौटकर फिर वही हो गए हैं.. जैसे हम पहले थे.. पर वहां हवा, ज़मीन, पानी, आसमान और धूप में     (The 5 elements) खुद कि असलियत से सामना हो जाता है.. कहीं ना कहीं हम खुद को पा लेते हैं  शायद यही कुछ बात है इस ज़मीन में कि यहाँ सब आते हैं.. अपना रंग.. अपनी ज़बान.. अपनी पहचान .. सब पीछे छोड़कर ......

सितारों की उम्र

किताबों में पढ़ा है कि कई  सि तारे हमारी धरती से भी पुराने हैं ... सोचता हूँ  तो याद आती है बरसातों की वो रातें जब बिजली जाया करती थी. रात में मेरे टेबल पर उस बड़ी मोमबत्ती के इर्द-गिर्द पतंगे नाचा करते थे.. मैं कभी पढ़ते-पढ़ते वहीँ टेबल पर सिर रखकर सो जाता था. रात को माँ मुझे बिस्तर पर सोने को कहती और मेरे सोने के बाद मोमबत्ती बुझा देती थी. मैं सुबह उठता तो सिर्फ मोमबत्ती जिंदा रहती और पतंगे जल चुके होते थे.. कुछ गर्मी से आह़त पतंगों  की लाशें मेरी किताब के खुले पन्नों में मिलती थी. अब जब घर में कभी बिजली नहीं जाती, तो मैं अक्सर बालकनी में रात देखने जाता हूँ. आसमान पर हर रात चाँद जलता है और सितारे इर्द-गिर्द नाचते हैं.. मैं अक्सर उनको देखकर खुद-ब-खुद आकर बिस्तर पर सो जाता हूँ. माँ दूर शहर में है, उसे पता नहीं कि मैं सोया हूँ या नहीं.. तो वो उसे जलता ही छोड़ देती ...

एक इल्तजा

शायद मुझे तुम पेड़ समझते हो, बस बोलते हो.. मेरी कभी सुनते नहीं.. शायद सोचते हो कि मेरी कोई उम्मीदें नहीं तुमसे ! जब खुश होते हो, मुझपर झूला डाल लेते हो, और मुझे २ पल कि हंसी का कारण बताकर खुश कर देते हो, फिर वो खुशी मैं तुमसे मांगता रह जाता हूँ, पर तुम नहीं आते.  जब भी परेशानी कि ठण्ड से कपकपाते हो,  मेरे सपनो कि कोई डाल काट कर सुलगा लेते हो.. शायद मेरे सपनो कि कोई एहमियत नहीं तुम्हे ! मैं जानता हूँ कि कभी एक छोटी सी बात पर, फिर किसी परिंदे कि तरह उड़ जाओगे तुम,  अपना दर्द का घोसला मेरी ही किसी डाल पर छोड़कर.. पर उससे पहले मेरी एक इल्तेजा है, एक बार ईमान से हँसकर मुझे गले लगा लेना, फिर ख़ुशी से जल जाऊंगा मैं अरमानो कि किसी भी बेतुकी होली में..... 1 January 2012