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Showing posts from May, 2012

पिकनिक

बचपन में पड़ोस की गली में एक घर था जहां सारे बुज़ुर्ग रहते थे.. सुबह से रात तक बातें ही करते रहते थे.. जाने कितनी बातें थीं उनके पास ! झुर्रियों, धब्बों में चेहरे यूँ खोए थे कि हंसता-रोता चेहरा एक सा ही लगता था.. बाल जितने सफ़ेद थे, आँखों की कटोरियाँ  उतनी ही अँधेरी काली.. जाने किस आहट को सुनकर सब अक्सर गली में "कौन आया" ये देखते रहते थे,  अक्सर तो कोई कहीं और ही होता था, और कभी-कभी तो कोई होता भी नहीं. बड़े कहते थे कि उनके बच्चे  उनको  पिकनिक पर छोड़ कर गए हैं ..  और मैं सोचता था कि काश इतनी लम्बी पिकनिक हमें भी मिल पाती..  बुज़ुर्ग होना बहुत अच्छा होता है.. मैं हमेशा सोचता था की जब बूढा हूँगा तो अपने दोस्तों के साथ ऐसे ही रहूँगा,  पर अब घर से दूर रहकर समझ आता है, कि पिकनिक का पूरा होना बहुत ज़रूरी होता है. घर जाना बहुत ज़रूरी होता है ... घर  होना  बहुत ज़रूरी होता है..  पिकनिक का पूरा होना बहुत ज़रूरी होता है.... मई १५, २०१२  पुणे ...