अजब बचपना है सूरज का, सुबह सुबह उठकर जिद करने लगता है ! पूरे मोहल्ले को जगा देता है.. किसी आम तोड़ने के लिए चढ़ते बच्चे की तरह जैसे, तने पर धीरे और फिर पहली शाख मिलते ही सरपट ऊपर चढ़ जाता है. फिर पेट भर कर धीरे-धीरे नीचे उतर कर चुपके से ओझल हो जाता है.. दिन भर बहुत हुडदंग मचाता है ये. और फिर शाम ढलते, जब माँ थाली में चाँद परोसकर देती है, खा पी कर रात की रजाई में सिकुड़कर सो जाता है.. तब कहीं ज़मीनी मोहल्ले वाले चैन से सो पाते हैं. अजब बचपना है सूरज का.... February 5, 2012
Poetry is my best mate during loneliness. Below are the few colors of this best mate of mine. :)