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Showing posts from February, 2012

सूरज का बचपना

अजब बचपना है सूरज का, सुबह सुबह उठकर जिद करने लगता है ! पूरे मोहल्ले को जगा देता है..  किसी आम तोड़ने के लिए चढ़ते बच्चे की तरह जैसे, तने पर धीरे और फिर पहली शाख मिलते ही सरपट ऊपर चढ़ जाता है. फिर पेट भर कर धीरे-धीरे नीचे उतर कर चुपके से ओझल हो जाता है.. दिन भर बहुत हुडदंग मचाता है ये. और फिर शाम ढलते, जब माँ थाली में चाँद परोसकर देती है, खा पी कर रात की रजाई में सिकुड़कर सो जाता है..  तब कहीं ज़मीनी मोहल्ले वाले चैन से सो पाते हैं.  अजब बचपना है सूरज का.... February 5, 2012

सन्नाटा

कल सन्नाटे से सामना हुआ, तो वो ख़ामोशी की चादर ओढ़े बैठा था. मैंने कुछ लफ़्ज़ों से चादर को टटोला, तो मूंह फुलाकर बैठ गया.. दोस्ती का हाथ बढाया तो उसने  मूंह फेर लिया,  एक अरसे से देखा नहीं था तो पहचानने से भी इनकार कर दिया.. फिर मेरे साथ अकेलापन भी आया है देखकर मुस्कुराया, कुछ पुरानी बात चली, तो मौसम ही बन गया.. फिर रात भर मैं, अकेलापन और सन्नाटा  बेलफ्ज़ ज़बां में बात करते रहे, और शराब थी, कि गिलास में गिरते और गले से उतरते हुए शोर मचाती रही... अगली बार हमारी बातों की महफ़िल में शराब को नहीं लायेंगे ... February 4, 2012

तेरे साथ रहूँगा मैं..

आज हूँ, कल नहीं रहूँगा मैं. ख़ाक बनकर हवा में उड़ता रहूँगा मैं..  कभी धूल का गुबार बनकर बाहों में भर लूँगा, कभी आँखों में किरकिरी बनकर तुझे परेशान करूंगा मैं.. कभी पहली बारिश में सौंधी खुशबू बनूँगा, फिर छज्जे से गिरती बूँद के साथ जुड़कर तुझे छू लूँगा मैं.. हर राह पर तेरे क़दमों के साथ चलूँगा, पलकों के बाल पर मांगी तेरी दुआ भी  खुदा तक पहुचाऊँगा मैं.. जब रुखसत करोगी खुद को ज़िन्दगी से, किसी अपने के हाथों तुझ पर गिरूंगा और तेरा हो जाऊंगा मैं.. तेरे साथ रहूँगा मैं...  12/02/2012