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Showing posts from August, 2008

फ्रेंडशिप डे (इवेनिंग)

आसमां लाल सा है, और सूरज अब तक डूबा नही है । ठंडी हवा चल रही है , और खम्बों पर लगी बत्तिया माहौल खुशनुमा कर रही है । टहलते हुए दोस्तों की टोलियाँ बहुत खुश नज़र आती है । पर मैं अकेला उदास खड़ा हूँ । सामने बैठे बच्चे मासूमियत से मुस्कुरा रहे हैं । उनके होठो पर बैठी मुस्कराहट से तुम्हारी याद आई । कहीं तुमने ही तो उस हसीं मे दोस्ती का तोहफा नही भेजा ? सुना है आजकल तुमने कोई नया हुनर सीखा है॥ उस हसी से तुम्हारी खुशी का एहसास तो हो गया मुझको , पर मैं अब भी अकेला उदास खड़ा हूँ । जब तुम्हारी याद बर्दाश्त न हुई तो घुस चला एक किताबो की दूकान मे । कुछ किताबो पर नज़र गई जो हमने कभी साथ पढ़ी थी , और मेरे होठो पे हसी के साथ आखो से एक आंसू छलक गया। निकला वहां से बाहर और सड़क की भीड़ मे खो गया जब रुका और पलट कर देखा तो पाया.. मैं अब भी अकेला उदास खड़ा हु । ०४-०८-०८ (फ्रेंडशिप डे की शाम)

दोस्ती

कुछ कागजों की उथल -पुथल से आँख खुली। देखा तो एक पुरानी लिखी अधूरी कविता ऊपर आना चाहती है । कभी लिखा था अपने दोस्तों के बारे मे, और जब लब्ज़ कम पड़ गए तो छोड़ दिया था उसे वहीँ। मेरी बाकी लिखी कविताओ की तरफ़ इशारा करके कहती है कि मैं उसे पूरा करूँ। जानता हूँ बहुत बोलता हु मैं , पर दोस्ती को बयां कर सके , वो लब्ज़ अब तक बने नहीं । हर बार गले मिलने पर खुश दिल का बोलना , हर दिन खुश होने पर पीठ ठोकना , वो हर शाम को चाय की चुस्कियां , वो जश्न मे टकराती बोतलों की आवाज़ , जो बयान कर सके इन आवाजो को कहाँ से लाऊं वो अल्फाज़ । माफ़ी मांग कर उस कविता को फ़िर एक बार सहेज कर रख दिया । और फ़िर सोचा कि आज कैसे इन कागजों मे जान आ गई ॥ देखा सामने की खिड़की खुल पड़ी है । और आज.. फ़िर घर मे दोस्ती की हवाएँ आई है । ०४-०८-२००८ ( फ्रेंडशिप डे की सुबह)