जीवन में अपनी पसंद का कुछ ना कर पाने से कहीं अधिक बुरा होता है, अपनी पसंद कुछ ना होना। एक बहुत ही विचित्र स्थिति होती है, जब आपको अपनी पसंद का खाना, जगह, रुचि आदि याद भी न हो। मैं कुछ ऐसे दौर में हूँ कि मेरा जीवन दूसरे तय करते हैं। मेरी आवश्यकताएं दूसरे निर्धारित करते हैं। मेरी पसंद दूसरे मर्यादित करते हैं। जैसे सर्कस का जोकर सिर्फ वही कर सकता है, जो सर्कस के मालिक को तालियां सुनवाए। जो करीबी है वो इतना करीब रहना चाहता है कि दम घुट जाए। और जो दूर है वह यूँ ही तो दूर नहीं! नज़र सबकी यूँ जमी हैं कि हँसे तो हँसे क्यों और रोये तो वह भी क्यों भला! सही और गलत की सारी सही परिभाषाएं दूसरों के पास हैं और साथ है ढेरों टिप्पणियां । लेकिन मुझ पर तरस मत खाओ मैं सिर्फ मैं ही नहीं, तुम भी हूँ! परिस्थितियों से असहाय मैं हूँ तो आदतों से असहाय तुम भी हो। एक दिन ऊर्जा की तरह बदल जाऊंगा मैं! उस दिन, तुम अपनी आदत के साथ रहोगे असहाय...
Poetry is my best mate during loneliness. Below are the few colors of this best mate of mine. :)