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Showing posts from 2015

चितकबरी सी ये ज़िन्दगी

चितकबरी सी ये ज़िन्दगी, बहुत कन्फ्यूज़ करती है.. कुछ अर्धसत्य सी लगती है..  जीवन और मृत्यु दोनों ही  सत्य माने जाते हैं , लेकिन मृत्यु किसने देखी है।   हर साल पतझड़ आता है जाने कितनी जाने लेकर जाता है , कौन उसे महामारी कहता है।   बस मनुष्य की अपनी सीमित सोच के अनुरूप सीमित सी लगती है.. चितकबरी सी ये ज़िन्दगी बहुत कन्फ्यूज़ करती है..  कुछ अर्धसत्य सी लगती है..    व्यवहार की परिभाषा अपनी है, दूसरो के लिये है | अपनी आँखों में तो अंतर्मन उधड़ा सा लगता है।  शर्मिंदगी की बैसाखी पर ज़िन्दगी आगे बढ़ती  है| फिर भी मुस्कराहट के साथ आँखे रौशनी से चमकती हैं |   चितकबरी सी ये ज़िन्दगी बहुत कन्फ्यूज़ करती है.. कुछ अर्धसत्य सी लगती है..  बैंगलोर  २८ जुलाई २०१५ 

आओ मिलकर तोड़ें तारे

लद गया है आसमान का पेड़ इतने तारो से  की अब  पकते है और टूट गिरते हैं  इससे पहले की गिरकर ख़त्म, हो जाए सारे आओ मिलकर तोड़ ले कुछ तारे  बिगबैंग ने जो बीज डाला था,  अरसा लगा होगा पेड़ खड़ा होने में | कितनी ही बारिशो ने सींचा होगा, जो ठन्डे बौर से अब चमकते फल बने है .. सोचता हूँ कि ना जाने पके तारे का स्वाद कैसा होता होगा ! मिठ्ठू ने कहा कि किसी तोते ने भी नहीं चखा है आज तक  घर की सारी  मिर्ची खा कर इतना ही बोला बदमाश ! खैर उम्मीद है आम सा मीठा ही होगा ..  कल रात ही गिरते तारे को ढूंढने भागा था | जब धरती ख़त्म हो गयी, तो रुक गया था | वो तारा किसी और के ग्रह में जा गिरा था | अब ऊंची डगाल से गिरे तारे का अंदाज़ा लगाना आसान भी तो नहीं ... आओ कुछ और ऊंची गुलेल मारें.. इससे पहले की गिरकर ख़त्म, हो जाए सारे, आओ मिलकर तोड़ ले कुछ तारे || बेंगलोर  २६ जुलाई २०१५