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Showing posts from 2014

जीवन की दौड़

फिर आ ही गया जन्मदिन, और मैं अपने सफर को नाप रहा हूँ..  दिन हफ्ते महीने साल दशकों में अपनी यात्रा के पड़ाव ढूंढता हूँ और सोच रहा हूँ की जीवन की इस दौड़ में कौन दौड़ रहा है..  समय या मैं ?? सब कहते हैं की समय के साथ चलो, वरना समय आगे निकल जायेगा..  पर सोचता हूँ कि शायद समय अपनी दौड़ दौड़ रहा हो, और उसे उसके पड़ाव मुझमे मिले! तो समय भी बाध्य होगा मेरा इंतज़ार करने के लिए..  अगर मैं हालात के सबक ले लूँ, तो उसका पड़ाव पार.. वरना रुकता हो वो मेरा इंतज़ार करते हुए।    लेकिन फिर देखता हूँ कि कभी मैं चाहता हूँ समय तेज़ी से गुज़रे पर वो धीमा वो जाता है! और मैं बाध्य हो जाता हूँ वो देखने और और महसूस करने के लिए जो मुझे पसंद भी नहीं! और कभी कितनी भी कोशिश करो, अच्छा समय भी रोके नहीं रुकता! अब जब दिन हफ्ते महीने साल दशकों में अपनी यात्रा के पड़ाव ढूढ़ने निकला, उसी राह में समय मिला, मेरे अनुभवों के फीते से अपने सफर की लम्बाई नापता हुआ..  समझना आसान था, साथ ही दौड़ रहे हैं.. "समय और मैं"।  २ दिसंबर, २०१४...

Letter To Long Lost Friend

एक अर्से से तुमको देखा नहीं दोस्त .. अब इतने दूर हैं कि यादो में भी एक दुसरे का रास्ता नहीं भूलते ! याद तो नहीं कि आखरी बार तुम्हे कब देखा था पर हाँ शक्ल याद है, आवाज़ याद है.. अंदाज़ याद है..  अब भी वैसे ही लगते हो.. मासूम छोटे बच्चे से! कमाल है कि तुम अब भी उतने ही हो, और मैं हूँ कि बढ़ता जा रहा हूँ! ये याद भी बड़ी मज़ेदार चीज़ है, वक्त भी रोककर रख लेती है. वर्ना एक मैं.. जिसके हाथ से वक्त यूँ फिसलता है कि रेत भी शर्मा जाए. कम्बख्त ये वक्त शायद मेरे पास ही यूँ तेल चुपड़ कर आता है,  मानो कुश्ती लड़ने आया हो मुझसे!  हाँ.. वैसे वो लड़ता भी है.. पछाड़ता भी है.. और जैसे ही मैं सोचता हूँ कि अब इसे पकड़कर पटखनी दे दूंगा, सरसराता हुआ हाथ से निकल जाता है..  मेरा बचपन भी यूँही हाथों से कहीं फिसल गया है  शायद तुम्हारी यादों में महफूज़ हो ! क्यूँ न यूँ करैं कि फिर मिलें, और लौटा दें एक दुसरे को  अपना-अपना बचपन.. अपनी-अपनी मासूमियत ! चलो अब आ भी जाओ  एक अर्से से तुमको देखा नहीं दोस्त! ...