अंगूठी न हुई मानो मछली पकड़ने का काँटा है! कितने लम्हे पकड़ लेती है.. पिछली दफा जब तुमने मुझे कहा था की मीठा कम खाओ, मैं तो किसी सरसराती मछली की तरह बच निकला था. पर अब जब भी कभी मीठा खाने को उठाता हूँ, कमबख्त वो लम्हा अंगूठी पर पालथी मारे बैठा मुह फुलाकर मुझे चिढाता है.. और याद है वो movie जो इतने जतन से देखने गए थे, और बिलकुल डब्बा निकली थी. कुछ ६०० रुपये में अपनी ही बेवकूफी पर "हमारी" पहली हंसी थी वो. फ़ोन चर्चा, street shopping और न जाने कितनी ऐसी यादें, अंगूठी पर design बनकर बैठी हैं, मैं खाली बैठे-बैठे अंगूठी घुमाता जाता हूँ, और कितने ही लम्हों की मछलियाँ साफ़ नज़र आती हैं.. अंगूठी न हुई मानो मछली पकड़ने का काँटा है! कितने लम्हे पकड़ लेती है.. बैंगलोर २३ - अगस्त - २०१३
Poetry is my best mate during loneliness. Below are the few colors of this best mate of mine. :)