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Showing posts from April, 2013

"शर्मसार"

आसमां से गिरता एक सितारा देखकर जैसे कोई पुराना दुश्मन मिल गया था..  मैं जानता था, कि कई लोग आँखे मूंदे दुआ मांग होंगे .. पर मैं उसकी आँखों में आँखे डाले देखता रहा .. एक टक ! अक्सर बंद पलकों के पीछे गिरते, वो कहीं छुप जाता था पर आज मेरे सामने आँखे झुकाए खड़ा था..  शर्मसार.. वो जानता था मैं उससे क्या कहना चाहता था ख़ामोशी का शोर जैसे उसके कान के परदे चीर रहा था। कुछ देर की चुप्पी तोड़ते हुए मैंने उससे पूछा  "कहाँ थे तुम जब मुझे तुम्हारी ज़रूरत थी ? यूँ तो दधिची बने फिरते हो!! " हाथ जोड़े पहली दफा सर उठाकर वो बोला, "जब मैं आसमान से गिर रहा होता था,  तुम आँखे बंद कर लेते थे। कभी सहारा देने के ख्याल से हाथ बढाया होता, तो अपने हिस्से का आसमान ही दे देता।" ज़मीन पर खड़े-खड़े  ही मैं अपने आप में कई आसमान गिरा.. अब मैं आँखे झुकाए खड़ा था  .. शर्मसार बेंगलोर  १९ - अप्रैल - २०१३