कहाँ से मैंने शुरू किया था, कितनी दूर चल निकला हूँ , वक्त ही एक फीता है जो , मेरे पीछे मेरा फासला नापता है। कितने गुनाह सीने मे दफ़न किए थे, और कितनी अच्छियाँ उन आँखों को दिखाई थी, अकेले मे जब मेरा ईमान नंगा होता है, आँखों का पूरा मोहल्ला झांकता है। वक्त से भी दौड़ ना लडूं.. उन सारी आँखों की भी परवाह ना करूँ.. पर ख़ुद से छुपकर जाऊंगा कहाँ .. उसे आँखों की ज़रूरत नही पड़ती, जो अन्दर ज़मीर से मेरा खुदा ताकता है ।।
Poetry is my best mate during loneliness. Below are the few colors of this best mate of mine. :)