आँखों की दीवार आधी ढह चुकी थी, ख्वाब, मानो बस देहरी पर खड़े थे कि एक कम उम्र का ख्याल कहीं से दौड़ता हुआ आया, और बिना दस्तक दिए पहले अन्दर आ गया. ख्याल छोटा सा ही था पर किसी तार्किक बच्चे कि तरह, reasons, logic और practicality की बातें करता था. जल्दी मानने वाला नहीं था वो, ये बात ख्वाब को भी पता थी इसलिए खवाब भी बाहर इंतज़ार करते बैठ गया.. इन छोटे ख्यालों से मुझे बेहद चिढ है, ये अकेले नहीं आते. मोहल्ले के बच्चे जैसे चौकलेट बाटने वाले दादाजी को देखते ही १-१ कर जमा हो जाते हैं, बस वैसे ही, १-१ करके आते गए. और मैं उन सबको समझता-समझाता रहा. रात कटती जा रही थी, और मेरी आधी बंद आँखे पूरी बंद नहीं हो पा रही थी. आखिर मैं झल्लाया.. "बस बहुत हुआ, अब जाओ यहाँ से !! मुझे सुबह ऑफिस भी जाना है.." कहकर सारे ख्यालों को भगाया और अपनी comfortable position में लेटकर, आँखे पूरी बंद करके इशारों में खवाब को बोला, "आ जाओ और आते वक्त दरवाज़ा बंद करके आना." उन खयालो ने नींद और मेरे बीच अजीब दीवार खडी कर दी थी, खवाब सिरहाने ही थे, पर मैं सारी रात जाग रहा था.. जून ९, २०१२ ग...
Poetry is my best mate during loneliness. Below are the few colors of this best mate of mine. :)