मैं मुखौटे में छुपा था.. मुखौटे में ही रह गया.. ना मेरे होने की कोई ख़बर थी, ना मेरे ना-होने की कोई ख़बर है.. जो जानता था मुझको, उसने किसी को बताया नही.. फ़िर कोई मुझे जानता नही, तो किसी ने मुझे अपनाया नही.. मैं तनहा ही था .. और अब तनहा ही नही - हूँ .. मैं जोकर ही था.. मर कर भी वही हूँ.. दूसरों के चेहरे पर हसी मुझे अब भी भाति है.. कभी कभार हिचकियाँ मुझे भी आती हैं.. देखने जाता हूँ कभी अपने कपडों में किसी और को.. सुनता हूँ लोग कहते हैं "पहले वाला ज़्यादा अच्छा था। " उनकी यह मायूसी अब भी मुझसे खलती है. जाता हूँ दौड़ कर स्टेज पर और कुछ नया कर दिखाता हूँ.. अब बिना मुखौटे के भी मुझे कोई देख नही सकता। मैं पहले भी अनदेखा था ... मर कर भी वही हूँ । एक चेहरा मुझे याद है.. अब भी उसे दूर से देखने भर को जाता हूँ.. उसके चेहरे पर हँसी अब भी सबसे खूबसूरत लगती है. उसका वो बचपन अब भी है, वो शरारत अब भी है.. पता नहीं उसको मैं याद हूँ या नहीं.. पर मेरे जेहन मे वो अब भी है.. शायद वो कभी सोचती होगी कि मैं कहीं हँस रहा हूँगा, उसे शायद वो कागज़ पर रंगों से बनी मुस्कराहट असली...
Poetry is my best mate during loneliness. Below are the few colors of this best mate of mine. :)