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Showing posts from February, 2008

चाँद

बचपन से मैं और मेरा दोस्त शब मे जागते रहे हैं। हममें फर्क सिर्फ़ इतना था कि उसके आस-पास बहुत दोस्त थे और मैं अकेला रहता था। उसे अपने दोस्तो को छोड़कर मुझसे खेलना पसंद था। वह मुझसे बहुत दूर रहता था और हम कभी बात भी नही कर पाते थे। वह मुह बना बना कर मुझसे बात किया करता था। बचपन मे हर तीस्वे दिन वो अपने गालों मे मिठाई भरकर अपना चेहरा गोल कर लेता था । और इस खेल के ठीक बीचों- बीच रात को वह छुप जाता और मुझे ढूंढने को कहता। उस दिन मैं उसे ढूंढ नही पाता था । अगले ही दिन जैसे जान बूझ कर वह अपनी सफ़ेद कमीज़ के किनारे दिखा देता, और मैं उसे ढूंढ कर खुश हो जाता । फ़िर पढ़ाई और नौकरी कि भागमभाग मे मैंने उसे लंबे अरसे तक नही देखा। मैं अब बड़ा हो गया हूँ .... पर वो अब भी बच्चा ही है। वो शायद अब भी मुझे नही भूला है ... वो आज भी मेरा दोस्त है। आज भी उसका वही खेल चला आ रहा है। जब कई दिन मैं उसके साथ जाग नही पाता ... वो सोचता होगा की मैं छुप गया हूँ ....... और मुझे ढूँढता होगा। आज शब फ़िर मैं और मेरा दोस्त जाग रहे हैं। आज भी उसके आस-पास बहुत दोस्त है... आज फ़िर मैं अकेला हूँ। १८/०२/08